शहीद भवन में सोमवार को नाटक चिंदियों की झालर खेला गया। इसकी खास बात यह रही कि रेडियाे के इस नाटक की कहानी काे बदलकर पहली इसे मंच पर खेला गया। इसका निर्देशन और लेखन मुकेश शर्मा ने किया। यह प्रस्तुति यहां अायाेजित नाट्य समारोह कलारंग के तहत हुई। निर्देशक मुकेश ने बताया कि यह नाटक वाचिक परंपरा पर अाधारित था, लेकिन इसकी कहानी में बदलाव कर इसे हमने स्टेज पर प्रस्तुत किया। एक घंटे पांच मिनट की अवधि के इस नाटके रेडियाे वर्जन में जहां अंत नंदन एक कमरे में अपने आपको बंद कर लेता है, वहीं मंच पर इन दृश्यों को हमने विस्तार दिया।
मुकेश ने बताया- यह कहानी 70 के दशक के पहले की है। जिसे 1972 में लेखक अमृत राय ने लिखा था, जाे कि एक रेडियो नाटक था। इसे मैंने इलाहाबाद केंद्र से साल 1972 में ही हासिल कर लिया था। मैंने तब से इसे संभाल कर रखा। पहले इसके लिए एक्टर तलाशे, कभी बना और बिगड़ा, लेकिन मंचन नही हुआ था। यह स्क्रिप्ट दबती गई और एक साल पहले फिर यह कहानी मेरे समाने आई तो मैंने फिर से इस पर नाटक तैयार किया।
नौकरी के लिए बेटे की सिफारिश नहीं करता है पिता
इस कहानी में एक परिवार है, जिसमें पति-प|ी आजादी के दिनों का संघर्ष याद करते हैं। वे अपने बक्से से आजादी के शहीदों के फोटो निकालकर उनका मॉश्चर से सुखाने के लिए क्लिप से टांगते हैं। इस दौरान उनका बेटा आता है कहता है कि मैंने लिखित परीक्षा पास की है एक बार आप मंत्री से कह देंगे तो मेरी नौकरी लग जाएगी। एेसे में लड़के का बाप कहता है कि मैं नही कहूंगा और न मैं अपने आदर्श का सौदा करूंगा। अंत में पिता के द्वारा बक्सों से निकाले सारे फोटो काे बेटा फाड़ देता है। हालांकि कुछ दिन के बाद वह लड़का अपनी मेहनत से तहसीलदार बन जाता है।
मुकेश ने बताया- यह कहानी 70 के दशक के पहले की है। जिसे 1972 में लेखक अमृत राय ने लिखा था, जाे कि एक रेडियो नाटक था। इसे मैंने इलाहाबाद केंद्र से साल 1972 में ही हासिल कर लिया था। मैंने तब से इसे संभाल कर रखा। पहले इसके लिए एक्टर तलाशे, कभी बना और बिगड़ा, लेकिन मंचन नही हुआ था। यह स्क्रिप्ट दबती गई और एक साल पहले फिर यह कहानी मेरे समाने आई तो मैंने फिर से इस पर नाटक तैयार किया।
नौकरी के लिए बेटे की सिफारिश नहीं करता है पिता
इस कहानी में एक परिवार है, जिसमें पति-प|ी आजादी के दिनों का संघर्ष याद करते हैं। वे अपने बक्से से आजादी के शहीदों के फोटो निकालकर उनका मॉश्चर से सुखाने के लिए क्लिप से टांगते हैं। इस दौरान उनका बेटा आता है कहता है कि मैंने लिखित परीक्षा पास की है एक बार आप मंत्री से कह देंगे तो मेरी नौकरी लग जाएगी। एेसे में लड़के का बाप कहता है कि मैं नही कहूंगा और न मैं अपने आदर्श का सौदा करूंगा। अंत में पिता के द्वारा बक्सों से निकाले सारे फोटो काे बेटा फाड़ देता है। हालांकि कुछ दिन के बाद वह लड़का अपनी मेहनत से तहसीलदार बन जाता है।