घोषणा के 6 साल बाद भी तैयार नहीं हो पाया नक्सली हमले में शहीद हुए सैनिक का स्मारक



बड़वानी  / राजपुर ब्लॉक में आने वाले ग्राम बघाड़ी के सैनिक संतोष चौहान 2010 में नक्सली हमले में शहीद हुए थे। इनके सम्मान में शहीद स्मारक बनाया जाना था, जो घोषणा के 6 साल बाद भी तैयार नहीं हो पाया। करीब चार साल पहले स्मारक के लिए मंगाई गई शहीद की प्रतिमा वहीं एक छात्रावास में पॉलीथिन में लिपटी रखी है। स्मारक स्थान पर प्रतिमा स्थापित करने के लिए स्टैंड तैयार किया गया है। इसमें भी घास उग आई है।


सैनिक के शहीद होने के बाद परिवार को आर्थिक मदद तक नहीं दी गई। इसके चलते पूरा परिवार बिखर गया। माता-पिता पीथमपुर में मजदूरी करते है। पत्नी और बच्चे अन्य गांव में जाकर दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। बघाड़ी गांव में करीब 6 साल पहले स्मारक बनाने की घोषणा की गई। तैयारी भी जोर-शोर से की गई। घोषणा होने के कुछ दिन बाद प्रतिमा भी बुला ली गई लेकिन उसे अब तक स्थापित नहीं किया गया है। ग्रामीणों की मांग है कि जल्द शहीद का स्मारक बनाया जाए। परिवार को लोगों ने बताया स्मारक बनाने के लिए कई भा जनप्रतिनिधि और अधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं। कलेक्टर अमित तोमर ने कहा- बावजूद कुछ भी नहीं हो रहा है। स्मारक को तैयार कराएंगे। शहीद के परिवार से चर्चा करेंगे।


7 मई 2010 को हुए थे शहीद


7 मई 2010 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के कोड़ेपाल में नक्सली हमले में शहीद हुए बड़वानी जिले के बघाड़ी गांव निवासी संतोष चौहान को गार्ड ऑफ ऑनर देकर अंतिम संस्कार किया था। कोड़ेपाल में नक्सलियों के बारुदी सुरंग हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस सीआरपीएफ में पदस्थ आरक्षक संतोषसिंह चौहान सहित आठ जवान शहीद हो गए थे।


बार्डर पर 15 किलो वजन लेकर 6 घंटे खड़े रहना पड़ता है


बार्डर पर ड्यूटी करने वाले सेवानिवृत सैनिक हरिदास खाकरे बताते हैं कि 15 किलो वजन लेकर 6 घंटे खड़े रहकर ड्यूटी करनी पड़ती है। इस अवधि में एक मिनट भी नहीं बैठ सकते। त्योहारों पर आपस में ही खुशी नहीं मना पाते, क्योंकि त्योहार के समय ज्यादा घुसपैठ की आशंका रहती है। इसलिए ज्यादा चौकन्ना रहना पड़ता है। बार्डर पर नेटवर्क नहीं मिलता। इसलिए परिवार से 15 से 20 दिन में एक बार बात हो पाती है। जवान पूरा समय खतरे के साये में रहता है। कब सामने से गोली आ जाए। हमेशा डर बना रहता है। उन्होंने बताया जम्मू-कश्मीर, पठानकोट, सिक्किम के नाथूला बार्डर सहित अन्य स्थानों पर 14 साल गुजारे। 31 जुलाई 2018 को ये सेवानिवृत हुए।


गिलेशियर में ड्यूटी करते समय हंसें तो होंठ कट जाते हैं


गिलेशियर (बर्फीले स्थान पर) में ड्यूटी करने वाले सेवानिवृृत्ति सैनिक एमके डोंगरे बताते हैं कि उन्होंने 11 साल बर्फीले स्थान पर ड्यूटी की। यहां पर 30 डिग्री सेल्सियस माइनस में तापमान रहता है। यदि हंस दे तो होंठ कट जाते और खून निकलने लगता। सेविंग भी नहीं कर पाते। कभी-कभी ज्यादा मौसम खराब होने पर कई दिनों तक एक ही स्थान पर रुकना पड़ता है। उन्होंने बताया कि अंतिम समय में वह अपने नाना-नानी, दादा-दादी का चेहरा तक नहीं देख पाए। कई बार तो ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। तब भी जवान ड्यूटी करके देश की रक्षा करते हैं। इन्होंने सूबेदार के पद पर रहते हुए लेह लद्दाख, जम्मू-कश्मीर में ड्यूटी की। 2012 में ये सेवानिवृत्त हुए।


पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ने वाले सैनिकों का पहली बार हुआ सम्मान


1961 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहर के राधेश्याम सोनी और सीताराम सोनी भी शामिल थे। इन्हें पहली बार नगर पालिका में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। जब इन्हें सम्मान मिला तो इनकी आंखों से खुशी के आंसू निकल आए थे।



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